30 January - 3 February 2025 | Hotel Clarks Amer, Jaipur

लेखक की रचना प्रक्रिया

लेखक की रचना प्रक्रिया

क्या ये समय केवल कहानियों का है ? क्या उपन्यासों का दौर अब ख़त्म हो चला ? क्या पाठकों ने अपने धैर्य की सीमा घटा ली है ? और सबसे बड़ा सवाल कि क्या ऐतिहासिक रचना रचते समय कोई रचनाकार वर्तमान से संबद्ध रहता है या फिर अतीत के मोहपाश उसे उलझा लेते हैं ?

रचना कर्म से जुड़े ऐसे ही कई अहम प्रश्नों का उत्तर पाने के लिए पाठकों की ओर से लेखिका अनु सिंह चौधरी सुप्रसिद्ध लेखक और उपन्यासकार डॉ० कमलाकांत त्रिपाठी और साहित्य अकादमी से सम्मानित साहित्यकार श्री नन्द भारद्वाज से रूबरू हुईं। 'ज़ी जयपुर लिट्रेचर फ़ेस्टीवल' के चौथे दिन डिग्गी पैलेस के 'संवाद' परिसर में आयोजित सत्र का शीर्षक था - "सरयू से सागर तक"। 

ऐतिहासिक कालखण्ड और पृष्ठभूमि पर लिखे गए अपने उपन्यास 'सरयू से गंगा' का संदर्भ लेते हुए कमलाकांत त्रिपाठी ने ऐतिहासिक तथ्यों को कथानक का पोषक बताया। उनके अनुसार किसी भी वर्तमान समस्या या प्रश्न का समाधान अतीत में छिपी उसकी जड़ तक पहुँच कर ही मिलता है। इतिहास से निकले तथ्य कथानक का गतिरोध नहीं बनते बल्कि उन्हें प्रमाणिकता देते हैं।धार देते हैं। उन्होंने अपनी बात को स्पष्ट करते हुए अपने उपन्यास की नायिका गंगा के माध्यम से 1765 के आसपास ईस्ट इण्डिया कम्पनी के राज में हुई घटनाओं का उल्लेख किया जो इतिहास का प्रामाणिक अंश तो हैं ही साथ ही कथानक को भी विश्वसनीय बनाती हैं। क्या लम्बे उपन्यास लिखते समय उन्हें यह दुविधा होती है कि पाठक उसे पढ़ेंगे या नहीं ? इस प्रश्न के लिए उनका बड़ा सहज उत्तर था कि पाठकों को ध्यान में रख कर लेखन नहीं किया जा सकता क्योंकि पाठक बदलते रहते हैं। जो आज पढ़ने वाले हैं उनमें नए जुड़ते रहते हैं। इतना ही नहीं पठन की प्रवृति भी बदलती रहती है। एक लेखक के रूप में उनके लिए केवल यह महत्वपूर्ण है कि जो कालखण्ड उन्हें आत्मा तक प्रभावित करे, वह पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ उसे उसकी समग्रता में लिखने का प्रयास करें। प्रतिष्ठित कहानीकार नन्द भरद्वाज ने अपनी रचना प्रक्रिया को साझा करते हुए कहा कि इतिहास का अपना महत्व ज़रूर है लेकिन एक लेखक दरअसल सारे संदर्भों को लेने के बाद अपने समय और अनुभवों को ही कलमबद्ध करता है। कल्पना के ज़रिये भी कुछ छूट ली जाती है। लेखक के अपने भावों का भी तथ्यों से अन्तर्सम्बन्ध स्थापित होता है तब जाकर कोई रचना रची जाती है। उन्होंने माना कि कहानियाँ हमेशा से पाठकों के अधिक करीब रही हैं। किस्से-कहानियों में अपना सुख-दुःख तलाशना मानव विकास का हिस्सा रहा है। कहानियाँ समाज की समस्याओं के भीतर तक उतरने की क्षमता रखती हैं।

साहित्य के ऐसे गूढ़ विषयों पर इन दो विद्वानों को सुनने के लिए युवाओं और किशोर श्रोताओं की बड़ी संख्या में उपस्थिति मन को कहीं न कहीं बहुत गहरे तक आश्वस्त कर रही थी। सत्र की प्रस्तुति 'दैनिक भास्कर' की ओर से हुई।