30 January - 3 February 2025 | Hotel Clarks Amer, Jaipur

शहरी जीवन का भविष्य

शहरी जीवन का भविष्य

‘द स्काई लाइन ऑफ़ अर्बन फ्यूचर’ सत्र में शहरों के बदलते स्वरुप और उनके भविष्य की इंडिया, चीन और नाइज़ीरिया के संदर्भ में ये चर्चा की गई, क्योंकि ये तीनों ही देश अधिक जनसँख्या वाले और विकासशील हैं| इस विषय पर बात करने के लिए पैनल में नीति आयोग के सीईओ, अमिताभ कांत; सेंटर फॉर पालिसी रिसर्च के प्रोफेसर नवरोज़ के.डबाश और आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के प्रेजिडेंट समीर सरन मौजूद थे| सत्र संचालन किया प्रखर पत्रकार प्रज्ञा तिवारी ने|

सत्र के विषय पर अमिताभ कांत ने कहा कि “भारत में तो शहरीकरण की प्रक्रिया अभी शुरू ही हुई है| आज हर एक मिनट में 30 भारतीय गांवों को छोड़कर शहर में रहने आ रहे हैं| जब अमेरिका में शहरीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई थी, तब हालात अलग थे| तब हवा पानी से लेकर सारे संसाधन मौजूद थे| लेकिन अब हमें हर चीज में संवहनियता और रिसाइकलिंग के बारे में सोचना पड़ रहा है| आज हर उपलब्ध संसाधन खतरे में है| तो हमें अपने विकास के साथ-साथ पर्यावरण की चुनौतियों से भी जूझना पड़ रहा है... लेकिन ये भी सच है कि भारत के विकास को टाला नहीं जा सकता|”

अमिताभ ने जितनी साफगोई से ये समझाया उससे वाकई में हमें हालात की वास्तविकता पता चलती है| दुनिया पिछले दस-पन्द्रह सालों में जिस तेजी से बदली है, उसका कोई भी अंदाजा नहीं लगा सकता था| क्लाइमेट इमरजेंसी, ग्लोबल वार्मिंग जिस विकराल तरह से आज हमारे सामने है, उसकी शायद किसी ने उम्मीद नहीं की थी|

नवरोज़ ने कहा कि “पेरिस एनवायरमेंट एग्रीमेंट” के बाद तरक्की करने वाला पहला भारतीय देश है| उस एग्रीमेंट में पर्यावरण को लेकर बहुत सी सावधानी बरतने के निर्देश दिए गए थे, और तब तक संकट के लक्षण दिखाई पड़ने लगे थे|
समीर सरन एक ग्रामीण सर्वे पढ़ते हुए बताया कि आज गाँवों में शिक्षा पर कितना जोर दिया जा रहा है, और इसका सीधा मतलब ये है कि आज पढ़ने वाले ये बच्चे कल को शहर में आयेंगे या फिर शहर को ही अपने गाँव तक ले जायेंगे| दोनों ही हालातों में शहरीकरण की प्रक्रिया को टाला नहीं जा सकता|

पर्यावरण के विषय में सोचना हम सबकी साझा जिम्मेदारी है, लेकिन ये भी तो एक किस्म की ज्यादती है कि विकसित देश खुद विकसित होने और खुद संसाधनों का इस्तेमाल करने के बाद, विकासशील देशों पर प्रतिबन्ध लगाकर, उन्हें संसाधनों के इस्तेमाल से रोक दें|
सत्र सुनते हुए सहसा मुझे ख्याल आया कि ये कुछ वैसा ही है कि हम एसी कमरे में बैठकर पर्यावरण की चिंता पर लेख लिखें या भूमंडलीय उष्मीकरण पर विचार करें|
लेकिन ये भी सच है कि जितना शहरीकरण जरूरी है, उससे ज्यादा पर्यावरण भी मायने रखता है| तो ऐसे में सबको अपनी साझा जिम्मेदारी निभाते हुए श्रेष्ठ उपायों पर सोचना चाहिए, न कि अपने से कमतर पर प्रतिबन्ध लगाकर हाथ झाड़ लेना चाहिए|