जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल का लव अफेयर
ज़ी जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के 13वें संस्करण में नामी लेखिका और फेस्टिवल की को-डायरेक्टर नमिता गोखले के नए उपन्यास ‘जयपुर जर्नल’ का लोकार्पण हुआ| जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की पृष्टभूमि पर आधारित इस रोचक और अनोखे उपन्यास को सत्र की शुरुआत में ही राजनेता और लेखक शशि थरूर ने ‘जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल का सेलिब्रेशन’ कहा|
डिग्गी पैलेस के खचाखच भरे फ्रंट लॉन में फेस्टिवल को समर्पित इस उपन्यास पर बात करने के लिए नमिता गोखले और शशि थरूर मंच पर मौजूद थे| सत्र संचालन शोनाली खुल्लर श्राफ ने किया|
उपन्यास की नायिका रुद्राणी राणा, एक लेखिका है, जो साहित्य फेस्टिवल की भीड़भाड़ में तनहा घूम रही है| बड़ी लालसा से वो ऑथर लाउन्ज को देखती है| एक लेखिका के संघर्ष के साथ ही इस उपन्यास में वास्तविक और काल्पनिक जीवन के किरदार घुलते-मिलते रहते हैं| जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में शामिल हो चुके या शामिल होने का सपना देखने वालों के लिए ये किताब एक ट्रीट है| इसमें प्रेस टेरेस है, तो जादू भाई (जावेद अख्तर) भी| मंच से आती आवाजों में कभी शशि थरूर सुनाई देते हैं, तो कभी कोई और प्रतिष्ठित वक्ता| इस किताब में एक ही साथ आपको कई पैकेज मिलते हैं|
किताब की रोचक पृष्ठभूमि की तरह ही ये सत्र भी कई मायनों में दिलचस्प रहा| नमिता गोखले और शशि थरूर, दोनों ही एक लेखक होने के साथ और भी कई बड़ी जिम्मेदारियां निभाते हैं| ऐसे में उनसे जब टाइम मैनेजमेंट के बारे में पूछा गया, तो नमिता गोखले ने बताया:
“इस किताब के फॉर्मेट ने मुझे लिखने में मदद की| फेस्टिवल डायरेक्टर की भूमिका ने इस कहानी में मुझे ज्यादा गहराई में उतरने में मदद की| मेरे लिए ये वापस से राइटिंग लाइफ में उतरने जैसा था| लिखते हुए मैं खुद को जमीन से जुड़ा महसूस करती हूँ, और जब नहीं लिख रही होती हूँ तो इस भीड़ में कहीं गुम हो जाती हूँ... शायद इंद्राणी की तरह ही|”
लेखन और इस किताब की बात करते हुए उन्होंने आगे बताया कि हममें से बहुत सारे लोग दिखते हैं, लेकिन उन सबमें अपनी बात को सामने लाने का साहस नहीं होता| लेखक बहुत नाजुक और संवेदनशील होते हैं|
शशि थरूर ने लेखन को एक एकांत प्रक्रिया बताया, जिसमें प्रतिभा के साथ सबसे ज्यादा जरूरत अनुशासन की होती है| ‘टाइम नहीं मिल पाता’ का बहाना इसमें सबसे बड़ी रूकावट है|
श्रोताओं में बहुत से लोगों की आँखों में लेखक बनने का सपना होता है, उनके मन में भी वो ही सारी दुविधाएं होती हैं, जिन पर इस सत्र में बहुत ईमानदारी से और दिल से बात की गई|
अगर आपने अभी तक ‘जयपुर जर्नल’ नहीं पढ़ी है, तो जरूर पढ़िए| हो सकता है उसके किसी किरदार में आपको अपनी या अपने किसी जान-पहचान वाले की झलक मिल जाये|