Jand Nisar and Kaifi
Javed Akhtar, Pavan K. Verma and Shabana Azmi in conversation with Rana Safvi
Presented By Red FM
NEXA Front Lawn
जिस मंच पर जावेद अख्तर, शबाना आज़मी, पवन वर्मा और रना सफवी एक साथ इक्कठे हों, उस मंच से उम्दा कविता और शायरी की गूँज और भारतीय सिनेमा पर उत्कृष्ठ चर्चाके स्वर उठने तो तय हैं| ये ऐसे नाम हैं जिन्हें किसी परिचय की ज़रूरत नहीं|
जब ये सारे दिग्गज एक साथ जमा हों, और शाम का उन्वान हो जावेद साहब के पिता मशहूर शायर जाँनिसार अख्तर और शबाना आज़मी के पिता प्रगतिशील शायर कैफ़ी आज़मी, तो रंग कुछ और ही हो जाते हैं|
एक ऐसा बेटा जो शायरों के खानदान से है, और बग़ावत करने के लिए शायरी नहीं लिखना चाहता था, वो लाखों-करोड़ों दिलों का महबूब शायर हो अपने पिता की शायरी का तर्जुमा पढ़ने बैठा था| शायद इसे ही ज़िन्दगी कहते हैं, शायद इसे ही क़िस्मत कहते हैं|
शबाना आज़मी का जाँनिसार अख्तर की शायरी को लेकर एक बड़ा ही दिलचस्प नज़रिया है| वे कहती हैं किजाँनिसार अख्तर अकेले शायर हैं जों शादी के बाद अपनी पत्नी पर शायरी लिखते थे| दुनिया की सब शायरियाँ शादी की देहलीज़ आर दम तोड़ देती हैं, पर जाँनिसार की मोहब्बत अलग थी|
इस बात पर बड़े शोख़ अंदाज़ में चुटकी लेते हुए जावेद अख्तर कहते हैं कि, “मेरी तो शादी के बाद इंकलाबी शायरी शुरू हुई थी!”
कैफ़ी आज़मी ने अपनी मोहब्बत से दूसरी उम्मीदें रखीं| उन्होंने“औरत” लिखी, उस ज़माने में जब औरतों को बराबर का इंसान भी नहीं समझा जाता था| वे चाहते थे कि उनकी मोहब्बत कदम से कदम मिला कर उनके साथ चले— खुद को कमज़ोर आंसूओं की मूर्ती नहीं बल्कि भड़कटी चिंगारी समझे|
ज़ाहिर है जब उस ज़माने की शायरी की बात होगी, तो इस ज़माने की शायरी से उसकी तुलना होगी ही| पवन वर्मा का मानना है कि समस्या नए या पॉप पोएट्री और कल्चर को अपनाने में नहीं, समस्या सब संस्कृतियों की अधपकी खीचड़ी बन जाने से है| ऐसे में कविता का स्तर गिरता है|
इस पर शबाना आज़मी का कहना था कि लेखकाई का स्तर गिरने में सारा दोष सिर्फ़ लेखक का नहीं, कुछ दोष श्रोताओं का भी है| अगर शायरी इतनी ही बुरी है तो उसे सराहा ही क्यों जाये?
जावेद साहब बड़े संजीदा ढंग से इसके जवाब में कहते हैं कि किसी एक समय में होने वाले लेखक और श्रोता उसी समाज से निकल कर आते हैं| उस समय जैसा भी उस समाज का रंगहोगा, वही उसकी शायरी में नज़र भी आयेगा|
संस्कृति को चाहिए कि वो एक बीच का रास्ता ढूंढें| कुछ दूर अगर पॉप कल्चर को जाना होगा तो कुछ दूरी शास्त्रीय संस्कृति को भी तय करनी होगी| जिंदगियां पहले जैसी आसान और धीमी नहीं… ट्विटर का ज़माना है, 280 कैरेक्टेर से ज्यादा पढने में आँखें थकने लग जाती हैं|
ज़रुरी है कि बच्चों में किताबों के संस्कार वापिस डाले जायें| किताबों को सजावट नहीं शाइस्तगी से इस्तेमाल किया जाये|
इसी उम्मीद के साथ कि आज नहीं तो पचास साल बाद नहीं तो एक साईं भर बाद भी ये पॉप और शास्त्रीय की दूरी मिटेगी, और इसी उम्मीद के साथ जावेद साहब और शबाना आज़मी ने अपने पिताओं की शायरी का तर्जुमा अपने पाठकों को सौंप दिया|