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जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल: एक और शानदार शुरुआत

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल: एक और शानदार शुरुआत

जनवरी आते ही एक पाठक और साहित्य में दिलचस्पी रखने वाले लोगों में सुगबुगाहट होने लगती है कि इस बार जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के प्रोग्राम में कौन से वक्ता, लेखक और कलाकार शामिल हैं| अपने लेवल पर मैं कई बार सोचती हूं कि जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल का वो कौन सा लम्हा या पहलु होता है, जब ये दिल एक बार को धड़कना भूल जाता है| गर ईमानदारी से कहूँ तो ऐसे कई लम्हें होते हैं, लेकिन सबसे बड़ा पल होता इस फेस्टिवल की औपचारिक शुरुआत| वो शुरुआत एक साथ कई घटनाक्रम का संयोजन होती है, उसमें नत्थू लाल के नगाड़े की गुंजायमान थाप होती है, तो शंखनाद के उत्तेजक सुर भी| इन्हें एक साथ सुनकर किसी के भी दिल के तार झनझनाने लगते हैं, एक ऊर्जा आपके बदन में प्रस्फुटित हो जाती है|
इस धुन पर कई बार मैंने खुद को ख़ुशी से आंसू बहाते हुए पाया है| ये वो अनुभव है जिसके लिए मेरा मन बार-बार यहां आने के लिए मचल उठता है| तो ज़ी जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल का 13वां संस्करण भी इसका अपवाद नहीं रहा| 23 जनवरी की इस गुनगुनी सुबह में भी, डिग्गी का ऐतिहासिक फ्रंट लॉन निराली कार्तिक की मधुर धुनों से भरा था और फिर नत्थू लाल जी के नगाड़े की थाप ने मानो साक्षात् सरस्वती देवी का आह्वान कर उस माहौल को पावन कर दिया| उस खूबसूरत लम्हे में वहां दिग्गज साहित्यिक हस्तियों के साथ, कला और राजनीति के भी अग्रिम लोग उपस्थित थे|
राजस्थान के लोकप्रिय मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत जी के साथ संजॉय के. रॉय, विलियम डेलरिम्पल, नमिता गोखले, शुभा मुद्गल, चन्द्र प्रकाश देवल ने औपचारिक रूप से दीप प्रज्ज्वलन किया| सभी वक्ताओं ने आज के उथल-पुथल भरे समाज में साहित्य की महत्ता पर जोर दिया|
लेखिका और फेस्टिवल की सह-निदेशक नमिता गोखले अक्सर इस फेस्टिवल की तुलना ‘साहित्य के महाकुंभ’, ‘कथासरितसागर’ से करती हैं| और अपनी विविधता में ये फेस्टिवल उसे साकार भी करता है| फेस्टिवल के प्रोड्युसर संजॉय के.रॉय ने कहा कि अभिव्यक्ति की आज़ादी हमारा मौलिक अधिकार है|
इस साल के प्रोग्राम की खासियत है यहां विविध बोलियों का समावेश| इस संस्करण में 15 भारतीय और 20 विदेशी भाषाओँ के वक्ता अपने हिस्से की कहानी कहेंगे|
फेस्टिवल का शुभारम्भ विजयदान देथा, बिज्जी की कहानियों के अंग्रेजी अनुवाद ‘टाइमलेस टेल्स फ्रॉम मारवाड़’ के लोकार्पण से हुई| बिज्जी की इन मधुर स्मृतियों का लोकार्पण मुख्यमंत्री जी ने किया और उन्होंने उनके साहित्य के प्रति अपना प्रेम और सम्मान भी जाहिर किया|
उद्घाटन संभाषण ‘द आर्ट, साइंस एंड क्रिएटिविटी’ विषय पर लोकप्रिय हिन्दुस्तानी शास्त्रीय गायिका शुभा मुद्गल और ब्रिटिश गणितज्ञ मार्कस दू सौतॉय ने दिया| कला, विज्ञान और रचनात्मकता एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता| ये जीवन और समाज के आधार हैं और किसी भी तरह के विकास में इनका समायोजन जरूरी है|
और फिर ज्ञान के बारे में तो वही बात दोहराई जा सकती है, जिसका जिक्र अक्सर नमिता गोखले अपने भाषण में करती हैं:

सरस्वती के भंडार की, बड़ी अपूरब बात|
ज्यों बांटों त्यों-त्यों बढ़े बिन बांटे घट जात||

इसी सीख के साथ फेस्टिवल के पांच दिनों में ज्ञान के इस सागर में डूबते-तैरते रहिये|